गुड़गांव। अभी तक आपने पंचर होने या फिर गढ्ढे में फंसी गाड़ी को ही जैक पर देखा होगा। लेकिन अब मकान भी जैक के सहारे गढ्ढे से बाहर निकलने लगे हैं। वो भी थोड़ा बहुत नहीं पूरे 11.5 फीट ऊपर। इंजीनियरिंग का ये अनोखा चमत्कार हुआ गुड़गांव में। दरअसल दिल्ली से सटे गुड़गांव में 500 गज में बनी ढाई मंजिला आलिशान कोठी 275 जैक के सहारे हवा में है। इस घर के हवा में होने के पीछे एक वजह है कि मकान लगभग 10 साल पुराना है, जिस कारण मकान सड़क से काफी नीचे हो गया।
ऐसे में आस पास का पानी इस घर के अन्दर भर जाया करता था। घर के तलब बनने से परेशान घर के मालिक ने इसे ऊपर उठावाने की योजना बनाई। घर को ऊपर उठाने के लिए जैक की तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इस तकनीक से ढाई मंजिला घर को सुरक्षित तरीके से सवा 11 फीट ऊपर उठाया गया है।
घर को जड़ से सवा ग्यारह फीट लिफ्ट कराने के लिए लगभग 275 जैक का इस्तेमाल किया गया। इस पूरी प्रक्रिया में 35 लोगों की लगभग 40 दिन की मेहनत लगी है। घर को लिफ्ट कराने वालों की मानें तो ये अपने आप में देश का पहला और एक अनूठा तरीका है।
इतना ही नहीं जिस खूबसूरती से इस घर को ऊपर उठाया गया है उस के चलते पूरे घर के किसी भी हिस्से में कोई दरार तक नही आई है। ऐसे में ये घर इस तकनीक के बाद भी उतना ही सुरक्षित है जितना पहले था
इमारत को जैक तकनीक से ऊपर उठाने वाले राजेश चौहान देश के एक मात्र व्यक्ति है। इस तकनीक को इन्होने बाकायद पेटेंट कराया हुआ है। राजेश चौहान की ये तकनीक लिम्का बुक आफ रिकोर्ड में भी दर्ज है
ऐसे में आस पास का पानी इस घर के अन्दर भर जाया करता था। घर के तलब बनने से परेशान घर के मालिक ने इसे ऊपर उठावाने की योजना बनाई। घर को ऊपर उठाने के लिए जैक की तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इस तकनीक से ढाई मंजिला घर को सुरक्षित तरीके से सवा 11 फीट ऊपर उठाया गया है।
घर को जड़ से सवा ग्यारह फीट लिफ्ट कराने के लिए लगभग 275 जैक का इस्तेमाल किया गया। इस पूरी प्रक्रिया में 35 लोगों की लगभग 40 दिन की मेहनत लगी है। घर को लिफ्ट कराने वालों की मानें तो ये अपने आप में देश का पहला और एक अनूठा तरीका है।
इतना ही नहीं जिस खूबसूरती से इस घर को ऊपर उठाया गया है उस के चलते पूरे घर के किसी भी हिस्से में कोई दरार तक नही आई है। ऐसे में ये घर इस तकनीक के बाद भी उतना ही सुरक्षित है जितना पहले था
इमारत को जैक तकनीक से ऊपर उठाने वाले राजेश चौहान देश के एक मात्र व्यक्ति है। इस तकनीक को इन्होने बाकायद पेटेंट कराया हुआ है। राजेश चौहान की ये तकनीक लिम्का बुक आफ रिकोर्ड में भी दर्ज है
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